Sunday, July 5, 2015

डर

तुम मेरी झुखी हुई चहरे को उठाकर
आँखों में यूं  झाँका ना करो  सखी
टूटीहुयी सपनों के
तुकडे ही नज़र आयेंगे

मेरे हाथ को तुम अपने
हाथों में लेकर  यूं नहलाया ना  करो
मुझे डर लगा रहता है की
कहीं रो न पडूं तुमारे सामने

तपके से गले मिलने की चाह होती है
मगर झिझकता रहता हूँ की
कहीं तुमारे कंधे को बिगो न दूं
अपनी अश्कों के बौछार से

मुझे तो रो पड़ने की डर नहीं
तुमारी नज़रों में गिरने से डर लगता है
तुमारी यकीन खोने का खौफ लगा रहता है
क्यों की दुनिया में ये कहावत भी तो  मशहूर है की
रोनेवाले मर्द और हसनेवाली औरत को
कभी यकीन न करना.



और भी कहते है कि  मर्द को दर्द नहीं होता है
मर्द हो या मादा दर्द तो दर्द होता है..
भले ही  बेवकूफी की वजह से हुआ  हो

तुम बस  मुस्कुराती यूं दूर खडी रहना
मैं जी  भर देख लेता हूँ तुम्हे
मुझे मुस्कुराने की कोशिष भी मत करना
अब तो प्यार भी भारी लगने लगा है



होशियारी

आज फिर तेरे दर पर माथे   
पटक पटककर बिलख उठा हूँ
पटकी हुई माथे पे झर्रे पड़गए हैं
लहू  निकलना तो दूर की बात
अब आँखों से अश्क भी नहीं निकलते 

मगर तुम तो ज़ालिम आँख अध मूंदे
यूँ मुस्कुराते कमर पे हाथ थामे खड़े हो
तेरी सूरत की घमंड से दिखता है कि ,
तुम मेरी मांग की इंतज़ार कर रहे हो 


मगर अपने दिल में यह गुरूर मत रखना
कि, तुम मेहरबान हों 
मेहरबानी की कीमत तो  सिर्फ
भिकारी के सामने होती है

मैं कुछ माँग  नहीं रहा तुम से
बस तुम को यह बता रहा हूँ कि,
तेरी सिला की ज़हर को
एक एक घुट कैसे पी रहा हूँ  


ज़हर निगलने की नौटंकी कर उसे 
गले में ही दबा के रखने की तुम्हारी होशियारी से वाक़िफ  हूँ मैं 
मैं भी पेट तक उतरने नहीं दूँगा उसे
यह मेरी  बिलखना भी झूटी हैं और तुम से भी बड़ा नौटंकी  हूँ मैं